Rekhta
Urdu Shayari Aur Aam | ये ख़ास फल जिसे 'आम' कहते हैं | Rekhta Studio
बार-ए-आमों का कुछ बयाँ हो जाए :
------
मौसम-ए-गर्मा के आग़ाज में जो फल हमें अपनी तरफ़ राग़िब करता है, वो आम है। हिन्दुस्तान में इसे फलों का राजा कहा गया है। हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब और हमारे शे’र-ओ-अदब में आम पर कई ऐसे शे’र और नज़्में कही गई हैं, जो हमारे हाफ़िज़े का हिस्सा हैं, हमारे रोज़-मर्रा में आम सिर्फ़ एक फल नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही मुश्तरका विरासत के तौर पर इसका इस्तिक़बाल किया जाता है। उर्दू शायरों ने भी आम को अपनी शे’री ज़मीन का हिस्सा बनाया,
संस्कृत अदब में तो हज़ारों साल पहले से इसका ज़िक्र मौजूद है जिसे ‘‘आमरम’’ कहा गया है। इसी तरह तामिल ज़बान में ‘‘मंगाई’’ के लफ़्ज़ से जाना जाता है और जब पुर्तगली हिन्दुस्तान आए तो इन्हीं के ज़रिए ये लफ़्ज़ अंग्रेज़ी तक पहुंचा, जिसे हम ‘‘मैंगो’’ के नाम से जानते हैं।
आइये देखते हैं कि उर्दू में ‘‘आम’’ पर क्या कहा गया है
अकबर इलाहाबादी को आम बहुत पसंद था, वो अपने दोस्तों को इसे तोहफ़े के तौर पर भी भेजते थे, और बा-क़ाएदा अपने ख़त में इसका ज़िक्र भी करते थे। अपने बे-तकल्लुफ़ दोस्त मुंशी निसार हुसैन को एक ख़त लिखते हुए आम की तलब करते हैः
नामा न कोई यार का पैग़ाम भेजिए
इस फ़स्ल में जो भेजिए बस आम भेजिए
ऐसा ज़रूर हो कि उन्हें रख के खा सकूँ
पुख़्ता अगरचे बीस तो दस ख़ाम भेजिए
मालूम ही है आप को बंदे का ऐडरेस
सीधे इलाहाबाद मिरे नाम भेजिए
ऐसा न हो कि आप ये लिक्खें जवाब में
ता'मील होगी पहले मगर दाम भेजिए
अकबर इलाहाबादी की ये छोटी सी नज़्म बहुत मशहूर हुई। इससे आमों के तईं उनकी बे-क़रारी का इज़हार होता है।
इसी तरह एक बार इलाहाबाद से अकबर ने अल्लामा इक़बाल को लंगड़े आमों का एक पार्सल भेजा। इक़बाल ने आमों के ब-ख़ैरियत पहुंचने पर रसीद भेजी और शक्रिया भी। अकबर को इलाहाबाद से लाहौर तक ब-हिफ़ाज़त आम पहुंचने पर काफ़ी तअ’ज्जुब हुआ, कम-अज़-कम उस ज़माने में ऐसे पार्सलों का इतना बड़ा सफ़र और वो भी ब-ख़ैरियत, मो’जज़ा ही था। अकबर ने अल्लामा इक़बाल के ख़त का जवाब लिखा और अपने तअ’ज्जुब का इज़हार इस शे’र से किया।
असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा
साग़र ख़य्यामी तंज़-ओ-मिज़ाह के मशहूर शायर हैं। उन्होंने इक ज़रा मिज़ाह के अंदाज़ में 'आम' के लिए एक अलग ही पहलू निकाला है
शे’र मुलाहिज़ा हो।
आम तेरी ये ख़ुश-नसीबी है
वर्ना लंगड़ों पे कौन मरता है
मिर्ज़ा ग़ालिब और 'आम' के तअ’ल्लुक़ के बारे में कौन नहीं जानता होगा, ग़ालिब तो इस फल से इश्क़ करते थे। उनके ख़तों में जा-ब-जा आम का ज़िक्र मिलता है, आइये मिर्ज़ा नौशा के एक वाक़िए के ज़रिए 'आम' से उनके इश्क़ को समझने की कोशिश करते हैं:
ग़ालिब के एक दोस्त जिन को 'आम' ना-पसंद था, इत्तिफ़ाक़ से एक दिन ग़ालिब के पास बैठे थे। मिर्ज़ा आम खाते जाते थे और छिलका बाहर फेंकते जाते थे। इतने में एक गधा आम के ढेर तक आया और सूँघ कर वापस चला गया।
‘दोस्त ने कहा, ‘देखा, गधे भी आम नहीं खाते।
‘ग़ालिब का जवाब था, ‘बिलकुल, ''गधे ही आम नहीं खाते''।
मिर्ज़ा ग़ालिब ने आम को मौज़ू’ बना कर एक मसनवी मिर्ज़ा फ़ख़रू के लिए कही है, जो बहादुर शाह ज़फ़र के चौथे बेटे थे। एक बार मिर्ज़ा फ़ख़रू ने ग़ालिब को आमों का तोहफ़ा भेजा तो ग़ालिब ने इसके शुक्रिये में ये मसनवी लिखी, जिस के कुछ शे’र मुलाहिज़ा हों।
बारे आमों का कुछ बयाँ हो जाए
ख़ामा नख़्ल-ए-रुतब-फ़िशाँ हो जाए
आम के आगे पेश जावे ख़ाक
फोड़ता है जले फफूले ताक
मुझ से पूछो तुम्हें ख़बर क्या है
आम के आगे नीशकर क्या है
साया उस का हुमा का साया है
ख़ल्क़ पर वो ख़ुदा का साया है
उर्दू शायरी में ये रही आमों की मुहतासर दास्तान । ये ख़ास फल जिसे 'आम' कहते हैं, हमारी ज़िन्दगी में ऐसा घुला-मिला है कि इस के बग़ैर हमारी ज़िंदगी अधूरी है।
-----------------------------------------------
Voice:RJ Fahad
Rekhta Recommends (Must Watch)
- Most Shared Videos
https://www.youtube.com/playlist?list=PLCTGa9vfQ95YspUOGJoTN_V49NrMICWkb
- Most Viewed Urdu Shayari & Discussions
https://www.youtube.com/playlist?list=PLCTGa9vfQ95Z47pow2d96Oa2DAkVk1sk5
- Selected 'Urdu Poetry' by Rekhta Studio
https://www.youtube.com/playlist?list=PLCTGa9vfQ95bKBCabfxXlvUGgKNvEcd8O
Subscribe & Click the notification bell :
https://www.youtube.com/rekhtashayari
Connect with us -
Visit the largest online resource for Urdu poetry and literature-
https://www.rekhta.org
Follow us on Social Media -
Instagram : https://www.instagram.com/Rekhta_Foun...
Facebook : https://www.facebook.com/RekhtaOfficial
Twitter : https://www.twitter.com/Rekhta